मुलिया हरी-हरी घास की गठरी लेकर आयी, उसके चेहरे पर गुस्सा था और बड़ी-बड़ी शराबी आँखो में डर दिखाई दे रहा था । महावीर ने उसका गुस्से से भरा चेहरा देखकर पूछा- क्या बात है मुलिया, क्या हाल है?
मुलिया ने कुछ जवाब न दिया- उसकी आँखें में आंसू आ गए।
महावीर ने पास आकर पूछा- क्या हुआ है, बताती क्यों नहीं? किसी ने कुछ कहा है, अम्माँ ने डाँटा है, क्यों इतनी उदास है?
मुलिया ने सिसककर कहा- कुछ नहीं, हुआ क्या है, ठीक तो हूँ?
महावीर ने मुलिया को ऊपर से नीचे तक देखकर कहा- रोती ही रहेगी या कुछ बताएगी भी -क्या हुआ है ?
मुलिया ने बात बदल कर कहा- कोई भी बात नहीं है, क्या बताऊँ।
मुलिया इस उम्र में गुलाब का फूल थी। गेहूं के जैसा रंग, हिरन सी आँखें, नीचे खिंची हुई ठुड्डी, गालों पर हल्की लालिमा, बड़ी-बड़ी नुकीली पलकें, आँखो में एक अजीब सी नमी , जिसमें एक दर्द अंदर ही अंदर साफ़ नजर आता था । पता नहीं, चमारों के इस घर में वह परी कहाँ से आ गयी थी। क्या वो फूल के जैसे कोमल इस लायक थी, कि सर पर घास की टोकरी रखकर बेचने जाती? उस गाँव में कुछ ऐसे भी लोग थे, जो उसके पैरो के नीचे आँखें बिछाते थे, उसकी एक झलक के लिए तरसते थे, जिनसे अगर वह एक बार बात भी कर लेती तो वो खुश हो जाते।
लेकिन उसे आये साल-भर से ज्यादा हो गया, किसी ने उसे लड़को की ओर देखते या बातें करते नहीं देखा था। वह घास लेकर निकलती, तो ऐसा लगता, जैसे सूरज की सुनहरी किरणे फ़ैल गयी हो । कोई गजलें गाता, कोई छाती पर हाथ रखता, पर मुलिया नीची आँख किये अपने रास्ते चली जाती। लोग हैरान होकर कहते- इतना घमंड! महावीर में ऐसी भी क्या खास बात है ? इतना जवान भी तो नहीं, पता नहीं यह कैसे उसके साथ रहती है!
मगर आज ऐसी बात हो गयी, जो इस जाति की और लड़कियों के लिए चाहे गुप्त संदेश होती, मुलिया के दिल में तीर की तरह चुभती थी । सुबह का समय था, हवा में आम के फूलो की खुशबू थी, आसमान से सोने की बारिश हो रही थी। मुलिया सिर पर टोकरी रख कर घास काटने चली, तो उसका गेहुआँ रंग सुबह की सुनहरी किरणों से सोने की तरह चमक उठा। तभी एक आदमी चैनसिंह सामने से आता हुआ दिखाई दिया। मुलिया ने चाहा कि बचकर निकल जाय; मगर चैनसिंह ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला- मुलिया, तुझे क्या मुझ पर जरा भी दया नहीं आती?
मुलिया का फूल-सा खिला हुआ चेहरा आग की तरह जलने लगा । वह जरा भी नहीं डरी, जरा भी न झिझकी, टोकरी जमीन पर गिरा दिया, और बोली- मुझे छोड़ दो, नहीं तो मैं शोर मचाती हूँ।
चैनसिंह को आज जीवन में एक नया अनुभव हुआ। नीची जाती में सुंदरता का इसके सिवा और काम ही क्या है कि वह ऊँची जातवालों का खिलौना बने।ऐसी हरकते कितनी ही बार उसने की थी। पर आज मुलिया के चेहरे का रंग, उसका गुस्सा और घमंड देखकर वह डर गया ।
उसने शर्मिंदा होकर उसका हाथ छोड़ दिया। मुलिया जल्दी से आगे बढ़ गयी। लड़ाई की गरमा गरमी में चोट का दुःख नहीं होता, दर्द होता है। मुलिया जब कुछ दूर निकल गयी, तो गुस्से, डर और अपने कुछ न कर सकने का सोच कर उसकी आँखो में आँसू भर आये। उसने कुछ देर रोकने की कोशिश की, फिर सिसक-सिसक कर रोने लगी। अगर वह इतनी गरीब न होती, तो किसी की क्या हिम्मत थी कि इस तरह उसकी बेइज्जती करता।
वह रोती जाती थी और घास काटती जाती थी। महावीर का गुस्सा वह जानती थी। अगर वो उसे बता दे, तो वह इस ठाकुर को जान से ही ना मार दे । फिर न जाने क्या होगा। ये सोच कर वह डर गयी । इसीलिए उसने महावीर के सवालो का कोई जवाब नहीं दिया।
Puri Kahaani Sune...
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