1894 में बसंत के मौसम की एक सुबह थी जब सारा लंदन और फैशन की दुनिया बेहद ईज्जतदार रौनल्ड अडैयर की रहस्यमयी और अजीबो-गरीब हालात में हुए कत्ल से दहल उठा था. पुलिस इन्वेस्टीगेशन से पब्लिक को इस कत्ल की हल्की-फुलकी जानकारी मिली थी पर काफी कुछ ऐसा था जो छुपाया जा रहा था. चूंकि पब्लिक प्रोजीक्यूशन के लिहाज़ से मामला इतना स्ट्रोंग था कि हर जानकारी को सामने लाना मुनासिब नही समझा गया. इस मामले को करीब दस साल हो चुके थे तो अब जाकर मै कत्ल के इस वारदात की खोई हुई कड़ियों की जानकारी दे सकता था जो इस हादसे को एक सनसनीखेज वारदात अंजाम देते थे.. वैसे खुद कत्ल की ये वारदात काफी दिलचस्प थी पर मेरे लिए उससे भी बढ़कर दिलचस्प था इसके पीछे जो हैरतअंगेज वजह थी, जिसने मुझे हिला कर रख दिया था और मेरी अब तक की एडवेंचरस लाइफ का सबसे बड़ा झटका दिया था.
यहाँ तक कि आज भी इतना लंबा अर्सा गुजरने के बाद, इस केस का ख्याल ही मेरे रोंगटे खड़े कर देता है, और मुझे उसी उत्तेजना, आश्चर्य और हैरानी के मिले-जुले एहसासों से भर देता है जो उस दौरान मेरे दिलो-दिमाग पर छाये हुए थे. यहाँ मै आपको एक बात बता दूं कि आम जनता ने इस केस में काफी इंटरेस्ट लिया था जब मैंने उन्हें एक बेहद ख़ास आदमी के कारनामे और उसकी सोच के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी दी वर्ना शायद वो कभी उस पर शक नही करते, अगर मैंने पब्लिक को नहीं बताया होता. क्योंकि मै अपना पहला फ़र्ज़ यही समझता हूँ, अगर उसने खुद मुझ पर इस बात को बताने की रोक नही लगाई होती, और पिछले महीने की तीन तारिख को ही मुझे ये आज़ादी मिली कि अब मै इस मामले पर अपनी चुप्पी तोडू.
ये कोई हैरानी की बात नही कि अपने दोस्त शरलॉक होम्ज़ के साथ रहते हुए मै भी क्राइम केसेस में काफी ज्यादा दिलचस्पी लेने लगा था, और उसके गायब होने के बाद जो भी केस पब्लिक के सामने आते थे, मै उन सबकी बड़ी गहराई सी तफ्तीश करता था, कई बार तो मैंने अपनी ही तस्सली के लिए शरलॉक के तरीके अपनाकर मामले की तह तक जाने की कोशिश की थी, हालाँकि उसके जैसी कामयाबी मुझे कभी नही मिली. लेकिन रौनल्ड अडैयर के साथ हुए उस हादसे ने मुझे झकझोर कर रख दिया था, जब मैंने कानूनी जाँच में दिए गये एविडेंस पढ़े जिसमे किसी अनजान आदमी या आदमियों के खिलाफ कत्ल का मामला दर्ज था,
उस वक्त मुझे उस भारी नुकसान का अंदाजा हुआ जो आम जनता को शरलॉक होम्ज़ की मौत से हुआ था. और मुझे पूरा यकीन है कि कत्ल की इस अजीब गुत्थी में ऐसे कई पॉइंट थे कि अगर शरलॉक होता तो गहरी दिलचस्पी दिखाता और योरोप के फर्स्ट क्रिमिनल एंजेट के तेज़ दिमाग और निगरानी में पुलिस की कोशिशे काफी हद तक कामयाब रहती. सारा दिन मेरे दिमाग में केस से जुडी बाते घूमती रही पर ऐसी कोई वजह समझ नही आ रही थी जो अपने-आप में काफी हो. सुनी-सुनाई कहानी को सुनाने का खतरा उठाते हुए मै उस सच्चाई को सामने रखूंगा जो कानूनी जाँच में नतीजे के तौर पर जनता के सामने रखी थी.
काफी ईज्जतदार और जाने-माने रौनल्ड अडैयर अर्ल ऑफ़ मेनूथ के दूसरे बेटे थे जोकि उस वक्त ऑस्ट्रेलियन कॉलोनी में से एक के गवर्नर हुआ करते थे. अडैयर की माँ मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने के लिए ऑस्ट्रेलिया से लौटी थी. वो और उसका बेटा रौनल्ड और बेटी हिल्डा 427, पार्क लेन में एक साथ रह रहे थे. ये नौजवान एक बढिया सोसाईटी में रहने आये थे, और इस यंगमेन का दूर-दूर तक कहीं कोई दुश्मन या बुरा चाहने वाला नही था. कारस्टैरयर्स की मिस एडिथ वुडली से उनका रिश्ता तय हुआ था हालाँकि कुछ महीने पहले आपसी रजामंदी से दोनों ने मंगनी तोड़ दी थी. वैसे रौनल्ड को मंगनी टूटने का ज्यादा दुःख नहीं था. अपने सीधे-सादे रहन-सहन और ठंडे स्वभाव के चलते उनका उठना-बैठना अपने पहचान वालो तक ही सिमित था. पर इसके बावजूद 30, मार्च,1894 की रात करीब दस से साढ़े ग्यारह के बीच इस बेपरवाह नौजवान की बड़ी ही रहस्यमय तरीके से मौत हुई थी.
रौनल्ड अडैयर ताश का शौकीन था, वो कई घंटो लगातर पत्ते खेल सकता था पर इस हद तक भी नहीं कि अपनी ही जान की बाजी लगा दे और वो बाँल्डविन, द कैवेनडिश और द बैगेटल कार्ड क्लब का मेंबर भी था. जिस दिन उसकी मौत हुई थी, उस रात उसे डिनर के बाद द बैगेटल कार्ड क्लब में रबर ऑफ़ व्हिस्ट खेलते देखा गया था. यही नहीं वो दोपहर में भी वहां ताश खेलने आया था. रौनल्ड और मिस्टर मरे(Murray), सर जॉन हार्डी और कर्नल मोरन चारो ने मिलकर व्हिस्ट का गेम खेला और बाजी बराबर की रही थी. अडैयर शायद पांच pound हारा था पर उसके जैसे रईस के लिए ये बड़ी मामूली सी रकम थी तो हारने के दुःख का तो सवाल ही पैदा नही होता. वो तकरीबन रोज़ ही किसी ना किसी क्लब में खेलने जाया करता था, वो ताश का काफी माहिर खिलाड़ी था इसलिए ज्यादातर जीत कर ही आता था. गोडप्रे मिल्नर और लार्ड बालमोरल की बातो से एक और खुलासा हुआ कि कुछ हफ्तों पहले ही उसने कर्नल मोरन की पार्टनरशिप में एक ही सिटिंग में चार सौ बीस पौंड जीते थे. पूछताछ से रौनल्ड के बारे में अब तक इतनी ही जानकारी मिली थी.
कत्ल वाले दिन रौनल्ड रात के करीब दस बजे क्लब से घर लौटा था. उस शाम उसकी माँ और बहन किसी रिश्तेदार के यहाँ गई हुई थी. नौकरानी ने बताया कि उसने दूसरी मंजिल के फ्रंट रूम में रौनल्ड के दाखिल होने की आवाज़ सुनी थी. ये कमरा आमतौर पर बैठक की तरह इस्तेमाल किया जाता था. नौकरानी ने जब कमरा गर्म करने के लिए फायरप्लेस में आग जलाई तो काफी धुआं हो गया, तो उसने खिड़की खोल दी थी. फिर करीब ग्यारह बजकर बीस मिनट पर लेडी मेनूथ और उनकी बेटी के वापस आने तक कमरे से कोई आवाज़ नही सुनाई दी. अपने बेटे को गुड नाईट बोलने की मंशा से लेडी मेनूथ उसके कमरे में गई.
दरवाजा अंदर से बंद था, उनके बार-बार आवाज़े देने और नॉक करने के बावजूद दरवाजा नही खुला तो नौकरों की मदद से दरवाजे को तोड़ा गया. कमरे में दाखिल होते ही सबके होश उड़ गए, उस बदनसीब नौंजवान की लाश टेबल के पास पड़ी मिली. उसे गोली मारी गई थी, एक्स्पेंडिंग रिवाल्वर की गोली ने उसके सिर के चीथड़े उड़ा दिए थे. कमरे से कोई हथियार बरामद नही हुआ. टेबल पर दस-दस पौंड के दो बैंक नोट और सत्रह pound के करीब गोल्ड और सिल्वर के दस सिक्के पड़े थे. पैसे अलग-अलग अमाउंट में ढेर बनाकर रखे गए थे. साथ ही एक कागज़ भी मिला जिस पर कुछ रकम लिखी गई थी और हर रकम के सामने क्लब के कुछ दोस्तों के नाम लिखे हुए थे, ये कागज इस बात की तरफ इशारा करता था कि मौत से पहले रौनल्ड खेल में हुए नफ़े-नुकसान का हिसाब-किताब कर रहा था.
पूरे घटनाक्रम की तफ्तीश के बाद मामला और भी पेचीदा नज़र आया. पहली बात तो ये समझ नहीं आई कि रौनल्ड में दरवाजा अंदर से क्यों बंद किया था. एक संभावना ये थी कि शायद खुनी ने ही दरवाजा अंदर से बंद किया और खून करके खिड़की के रास्ते बचकर निकल गया पर खिड़की की उंचाई करीब बीस फीट थी और नीचे क्रोकस के पौधो की क्यारियाँ थी जिन पर फूल खिले हुए थे. पर हैरत की बात तो ये थी कि एक भी फूल नही टूटा था और आस-पास की मिट्टी पर भी कोई निशान नही थे. और ना ही घास के पैरो से कुचले जाने के निशान थे जो घर से लेकर रोड तक के रास्ते पर उगी हुई थी.
यानी एक बात तो पक्की थी कि नौजवान ने कमरे का दरवाजा खुद बंद किया था. लेकिन दरवाजा अगर बंद था तो उसे मारा किसने? अगर कोई खिड़की से चढ़कर ऊपर आता तो उसका कहीं कोई निशान तो जरूर मिलता. पर मान लो किसी ने बाहर से गोली चलाई है तो वो उसका निशाना एकदम अचूक था जिसने अपने शिकार को एक ही निशाने में मौत की नींद सुला दिया. पर एक सवाल यहाँ भी खड़ा होता है. पार्क लेन भीड़-भाड़ वाला ईलाका है और घर से कोई सौ यार्ड की दूरी पर एक टैक्सी स्टैंड है इसके बावजूद किसी ने भी गोली चलने की आवाज़ नही सुनी पर कमरे में एक आदमी की लाश और रिवाल्वर की गोली मिली थी जो फट कर मशरूम जैसी हो गई थी, जैसे कि सॉफ्ट नोज्ड बुलेट हुआ करती है और गोली ने इतनी ज़बर्दस्त मार की थी कि लगते ही मौत हो गई.
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