क्या आप जानते है हमारे देश में आज भी कई ऐसे सोशल ईविल्स है जो परम्परा और कल्चर के नाम पर फोलो किये जाते है, जो हमारे समाज को दीमक की तरह अंदर ही अंदर खोखला करते है, इन्ही में से एक अनटचेबिलिटी यानी छुवाछूत की प्रथा जिसने समाज के एक वर्ग हमेशा से एक्स्प्लोईट किया है, उसे कमज़ोर बनाया है, उसका शोषण किया है. ज़रा सोचिए ये लोग हमारे घरो का कचरा साफ़ करते है, सीवर साफ़ करते है, सडक की गंदगी उठाते है और बदले में हमने उन्हें क्या दिया? समाज का ऊँचा तबका इन्हें जानवरों से भी गया गुज़रा समझता है. लेकिन आजादी के बाद से सोसाइटी में काफी बदलाव आए है. आज हमारे देश के कानून में अनटचेबिलिटी एक क्राइम है और अनटचेबल कहे जाने वाले लोगो को इक्वल राईट्स और फ्रीडम हासिल है. और हमे ये बात माननी ही होगी कि देश में तरक्की तभी आएगी जब सब लोगो को बराबरी का हक और आगे बढ़ने का मौका मिलेगा.
ये बुक किस किसको पढनी चाहिए?
बाबा भीमराव अम्बेडकर की ये किताब हमे समाजिक तौर तरीको के बारे में काफी कुछ सिखाती है. आप चाहे किसी भी धर्म या जाति के हो, आपको ये बुक पढकर जरूर देखनी चाहिए, डॉक्टर अम्बेडकर की स्टोरी ना सिर्फ समाज के कमज़ोर वर्ग को बल्कि सबको एक सीख देती है कि अगर इरादे मजबूत हो तो इंसान अपनी किस्मत खुद लिख सकता है. बाबा साहेब अम्बेडकर ने एजुकेशन की पॉवर जानते थे इसीलिए तो उन्होंने कहा था” मेरे नाम की जय-जयकार करने से अच्छा है मेरे बताए रास्ते पर चलो”.
इस बुक के ऑथर कौन है?
ये बुक बाबा साहेब अम्बेडकर की ऑटोबायोग्राफी है. इंडिया के फर्स्ट लॉ एंड जस्टिस मिनिस्टर बाबा साहेब का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में महाराष्ट्र के एक दलित घर में हुआ था. बाबा साहेब बचपन से ही ब्रिलिएंट स्टूडेंट थे. उन्होंने कोलंबिया यूनिवरसिटी और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स से डॉक्टरेट की डिग्री ली. अपने शुरुवाती दिनों में वो एक इकोनोमिस्ट, लॉयर और प्रोफेसर भी रहे थे. 1956 में वो बुध्हीज्म में कन्वेर्ट हो गए थे और उनके मरने के बाद 1990 में उन्हें भारत रत्न का अवार्ड दिया गया.
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