1930 में भगत सिंह जब लाहौर सेंट्रल जेल में बंद थे तब उन्होंने एक एस्से लिखा था. वो खुद को एक एथीईस्ट (नास्तिक), मतलब जो भगवान् में विश्वास नहीं करते, मानते थे. इस वजह से उनके दोस्त उन्हें घमंडी समझने लगे. वो कहते कि भगत सिंह खुद को नास्तिक इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्हें बहुत अहंकार और घमंड है...
मगर भगत सिंह इस बात से बिलकुल सहमत नहीं थे. इस एस्से में उन्होंने समझाया है कि उनके नास्तिक होने का कारण घमंड नहीं है. इस बुक में आप उनके आज़ाद सोच और प्रिंसिपल्स के बारे में सीखेंगे.उन्होंने दुनिया में बहुत अन्याय और नाइंसाफी देखी तो सवाल किया कि अगर सच में भगवान् है तो वो अपने लोगों को इतने दुःख और तकलीफ क्यों देता है?
ये बुक समरी किसे पढ़नी चाहिए ?
हर एक इंडियन जो महान भगत सिंह के विचारो को जान ना चाहता है |
इस बुक के ऑथर कौन है ?
भगत सिंह ने मौत का सामना हिम्मत से किया, वो उससे घबराए नहीं. वो खुश थे कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इंडिया की आज़ादी और लोगों को आज़ाद करने में लगा दिया. 1931 में उन्हें फांसी दे दी गयी. वो सिर्फ 23 साल के थे.
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